अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिता: |
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयका: || 18||
अहङ्कारम्-अभिमान; बलम्–शक्ति; दर्पम् घमंड; काम-कामना; क्रोधम्-क्रोध; च-और; संश्रिताः-परायण; माम्-मुझे; आत्म-पर-देहेषु-अपने और अन्य के शरीरों में प्रद्विषन्तः-निन्दा करते हुए; अभ्यसूयकाः-दूसरो की निंदा करने वाले।
BG 16.18: अहंकार, शक्ति, दम्भ, कामना और क्रोध से अंधे मनुष्य अपने और अन्य लोगों के शरीरों में उपस्थित मेरी उपस्थिति की निंदा करते हैं।
Start your day with a nugget of timeless inspiring wisdom from the Holy Bhagavad Gita delivered straight to your email!
यहाँ श्रीकृष्ण आसुरी प्रवृत्ति वाले लोगों के और लक्षणों का वर्णन करते हैं। वे अधम, क्रूर, और धृष्ट होते हैं। उनमें सदाचार नहीं होता और वे सभी में दोष ढूढने में आनंदित होते हैं। ऐसे आसुरी स्वभाव वाले व्यक्ति स्वयं को अत्यंत महत्त्वपूर्ण समझते हैं और दूसरों से ईर्ष्या करते हैं। अगर कभी कोई उनकी योजनाओं का विरोध करता है, तब वे क्रोधित होकर उन्हें कष्ट पहुँचाते हैं और इस तरह से स्वयं को भी कष्ट देते हैं। परिणामस्वरूप वे परमात्मा की उपेक्षा और अपमान करते हैं जो सभी के हृदयों में स्थित है।